V.S Awasthi

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सुबह -सुबह से ढेरों चिड़ियां अंगना मेरे आ जाती हैं

सुबह -सुबह से ढेरों चिड़ियां अंगना मेरे आ जाती हैं।
चीं- चीं  चूं-चूं शोर मचा कर सब मुझे जगाने आती हैं।।
जैसे ही दाना बिखरा दूं तो फुदक-फुदक कर खाती हैं।
खाते-खाते आपस में फिर झगड़ा भी वो कर जाती हैं।।
खाकर दाना पानी पीती जो अंगना में टंगा हुआ।
रोज देख उनकी दिनचर्या मेरा मन भी उल्लसित हुआ।।
जिस दिन बारिश होती है वो बेचारी भूखी रहती।
मेरी नींद नहीं टूटे अंखियां भी अलसाई रहती।।
शाम को बारिश बन्द हुई तो फुदक-फुदक कर आ जातीं।
खोज-खोज कर एक-एक दाना अंगना का मेरे का जातीं।।
लान के पेड़ में गौरैयों के कई घोसले बने हुए।
उसमें उनके बच्चे रहते दाना खाकर वो बड़े हुए।।
चिड़ियों के संग मुझे खेलना बचपन की याद दिलाता है।
मैं बूढ़ा हूं पर दिल मेरा फिर से बच्चा बन जाता है।।

विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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3 Comments

Gunjan Kamal

16-Jul-2023 01:06 AM

👌👏

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Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:24 PM

बहुत खूब

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Alka jain

15-Jul-2023 02:02 PM

Nice one

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